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विशिष्ट बच्चे

विशिष्ट बच्चे

दिमाग के अल्पविकास की वजह से इस प्रकार के बच्चों में बातचीत, आपसी संबंध एवं व्यवहार को लेकर रुझान में असामान्यता देखने को मिलती है। Autism बच्चों की बढ़ती संख्या समाज में आई जागृति और चिकित्सकीय व्यवस्था का नतीजा है।

आम तौर पर तीस महीने तक के बच्चों में Autism के लक्षण नजर आते हैं। कुछ सीखने और अनुसरण करने में निष्क्रिय और रुचिहीन व्यवहार देखने को मिलता है। सामान्य रूप से ऐसे बच्चों में शांत पड़े रहने, कम रोने और बहुत ज्यादा सोने के लक्षण दिखते हैं। ऐसे बच्चे देर से बोलना सीखते हैं। कई बार तो माता-पिता यह मानकर चलते हैं कि बच्चा गूंगा होगा। बेहद स्टीरियोटाइप व्यवहार एवं बमुश्किल कोई हाव-भाव व्यक्त करता है। ऐसे बच्चे आंख मिलाने से बचते हैं और सीखने में धीमे होते हैं। लड़कों में लड़कियों की तुलना में Autism चार गुना अधिक होता है। वयस्क उम्र आते-आते इन बच्चों में तीस से चालीस फीसदी तक का सुधार देखा जा सकता है, परंतु इसके लिए उन्हें सहायता, मार्गदर्शन और सहारे की जरूरत पड़ती है। ऐसे मामलों में दस वर्ष की उम्र के बच्चे में तीन वर्ष के बच्चे जितना बौद्धिक विकास होता है।

इन बच्चों की यदि उचित देखभाल न की जाए तो रोजमर्रा की समस्याओं के साथ परिवार की मुश्किलें भी बढ़ती जाती हैं।

माता-पिता बनने की पूर्वशर्त यह समझना है कि, बच्चे के रूप में ईश्वर व्यक्ति की कसौटी करता है और सभी तरह के बच्चों की परवरिश एक चुनौती होती है।

Autism बच्चों के खास डॉक्टर, खास सलाहकार एवं अलग स्कूल ज्यादा मदद कर सकते हैं। इस तरह के समान बच्चों को संगीत, नाटक, खेलकूद, सहअभ्यास प्रवृत्तियां और Interaction ज्यादा बेहतर परिणाम दे सकते हैं। Autism लंबे दौर की चुनौती है और दवाई के बजाय माता-पिता का धैर्य एवं सहनशीलता ही बेहतर नतीजे दे सकती है।

सीखने में असमर्थ बच्चेः
देर से बोलना शुरू करने वाले बच्चों में पढ़ने और सीखने की असमर्थता या कहें कि अक्षमता ज्यादा देखने को मिलती है। शब्दों के उच्चारण, वर्णविन्यास, संख्याओं की पहचान की सामूहिक समस्याओं को dyslexia कहते हैं। कभी-कभी कमजोर नजर वाले बच्चे भी इसका शिकार बन जाते हैं। यह समस्या लड़कों में विशेषकर पारिवारिक समस्या से जूझ रहे बच्चों में ज्यादा नजर आती है।
बड़ी उम्र के माता-पिता से जन्म लेने वाले बच्चों, गरीबी, बेरोजगारी, शारीरिक कष्ट, पढ़ाई-लिखाई के माहौल का अभाव, सिर्फ माता या पिता के साथ रहने वाले बच्चों तथा दबाव में रहने वाले बच्चों में यह समस्या अत्यधिक प्रमाण में नजर आती है।
विशेष रूप से प्रशिक्षित शिक्षक, विशेष कक्षाएं और सक्रिय माता-पिता की मदद से बिना किसी दवाई के भी ऐसे बच्चे dyslexia के चक्रव्यूह से बाहर निकलते हैं। dyslexia से ग्रसित बच्चों के लिए काम करने वाली संस्थाओं के सहयोग, सलाह एवं मार्गदर्शन से बच्चे तेजी से इस चुनौती का सामना कर पाते हैं।
इसी तरह, श्रवण कमजोरी, देखने एवं ग्रहणशक्ति की कमजोरी वाले बच्चे बजाय दवा के माता-पिता एवं शिक्षकों के सकारात्मक प्रयासों से जल्दी ठीक हो सकते हैं।

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