बच्चा किस माध्यम में पढ़े? इस विकट सवाल से हर परिवार कभी न कभी दो-चार होता है।
- आम तौर पर जो माता-पिता बच्चे के भविष्य से संबंधित निर्णय २० वर्ष बाद की परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए करते हैं, वे निर्णय सच साबित होते हैं। माध्यम से संबंधित निर्णय घर के बुजुर्गों की राय के आधार पर नहीं बल्कि कॉलेज में पढ़ने वाले २२ साल के नौजवान के मत के आधार पर करना चाहिए।
- घर की परिस्थिति व माहौल और माता-पिता की शिक्षा तो माध्यम के चुनाव के लिए महत्वपूर्ण है ही, परन्तु बच्चे का भविष्य और प्रतियोगिता के साथ विकास के मद्देनजर बच्चे से संबंधित निर्णय लेने की होशियारी ज्यादा अहम साबित होती है।
- मातृभाषा के प्रति लगाव, आदर्श एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बातें बतौर आदर्श अच्छी लगती हैं। परन्तु वास्तविक परिप्रेक्ष्य में, प्रतियोगी माहौल की जरूरत को परिपूर्ण करने के लिए अंग्रेजी माध्यम अधिक उपयोगी साबित होता है।
- अंग्रेजी एक अंतरराष्ट्रीय भाषा है। इतना ही नहीं, परन्तु अंग्रेजी आज विकास, वार्तालाप, बिजनेस, नॉलेज, रिसोर्स, मीडिया और कंप्यूटर का ज्ञान देने के साथ-साथ अवसर मुहैया कराने वाली भाषा है। अंग्रेजी माध्यम में पढ़ने वाले बच्चों को अपेक्षाकृत अधिक अवसर उपलब्ध होते हैं।
अलादीन के जिन से भी ज्यादा शक्तिशाली इंटरनेट में गूगल और याहू जैसे सर्च इंजन बेहतर अंग्रेजी जानने वाले बच्चों के हाथ में समग्र दुनिया की जानकारी लेकर सैकंड में हाजिर हो जाते हैं।
- जो माता-पिता स्पष्ट निर्णय लेने में असमर्थ हैं, उन्हें चाहिए कि वे बच्चों को केजी स्कूल में दो वर्ष अंग्रेजी माध्यम में पढ़ाने के बाद वैकल्पिक निर्णय लें।
- प्रत्येक माता-पिता को अपनी संतानों के भविष्य से संबंधित दुविधा भरी स्थिति को लेकर चर्चा के जरिए परिपक्व लोगों का मार्गदर्शन या सलाह लेनी चाहिए।
- अनुभवी एवं परिपक्व बड़े-बुजुर्ग भी वर्तमान परिस्थिति को ध्यान में लिए बगैर जब मार्गदर्शन देते हैं तो अक्सर उसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। मौजूदा दौर में व्यक्ति के अनुभव का संबंध समय के पैमाने यानी कि बरसों के साथ नहीं बल्कि वह किस हद तक नयेपन को स्वीकार कर सकता है, उससे जुड़ा हुआ है।
- ईसाई मिशनरियां जंगलों में, आदिवासी क्षेत्रों में अंग्रेजी माध्यम की बहुत अच्छी स्कूलें संचालित करती हैं। लिहाजा, वहां के बच्चों को विकास के बेहतर अवसर मिलते हैं।
- गुजराती माध्यम में अध्ययनरत बच्चों की गुजराती भाषा पर पकड़ होती है और उनकी भाषा अभिव्यक्ति खिली हुई होती है, ऐसा कोई अनुभव मुझे नहीं हुआ है। लेकिन हां, उन बच्चों के लिए गुजराती भाषा की लिखित अभिव्यक्ति सरल अवश्य बन जाती है।
- कई भाषाविदों का मानना है कि, जिस भाषा में सपने आते हों, बच्चे को उसी भाषा में पढ़ाना चाहिए। अरे! अंग्रेजी का सपना तो अंग्रेजी पढ़ने के बाद ही आएगा न? पहले कैसे आएगा यह समझ से परे है।
- "मैं गुजराती माध्यम में पढ़ा हूं और बेहतर गुजराती लिखता हूं। लेकिन माध्यम को लेकर मैं दुराग्रही नहीं हूं। परन्तु विगत ३० वर्षों से मैं देख रहा हूं कि, जो बच्चे पढ़ाई का अच्छा अवसर प्राप्त करते हैं वे कुल मिलाकर तरक्की करते हैं।"इस बात में कोई संदेह नहीं कि गुजराती माध्यम में अच्छी अंग्रेजी सीखने वाले बच्चे भी मास्टर्स लेबल पर अंतरराष्ट्रीय कॉलेजों में बेहतर प्रदर्शन करते हैं और सफल होते हैं। हालांकि, शुरूआती दौर में उन्हें अंग्रेजी माध्यम की कमी अवश्य खलती है। आगामी वर्षों में माध्यम का निर्णय जागृत माता-पिता के, प्रतिशत, परिणाम और क्षमता को लेकर मूलभूत धारणा को बदल देगा।