Preschool Blogs| भावी चुनौतियां | Ahmedabad Juniors
Menubar

भावी चुनौतियां

भावी चुनौतियां

आम तौर पर समकालीन समस्याओं और समय की मांग के मद्देनजर माता-पिता अंग्रेजी या गुजराती माध्यम की स्कूलों का चुनाव तथा बच्चे को उपलब्ध कराए जाने वाले अवसरों एवं वातावरण को ध्यान में रखते हैं।

माता-पिता एवं स्कूल के संचालक यह भूल जाते हैं या समझते नहीं या फिर उनमें ऐसी दृष्टि नहीं होती कि बच्चे को जिन परिस्थिति एवं समस्याओं का सामना करना है, वह पीढ़ी २५ वर्षों में बदल जाती है। यानी कि जब बच्चा जब तैयार हो कर बाहर निकलता है, तब उसे नई परिस्थिति एवं नई समस्याओं का मुकाबला करना पड़ता है।

२५ वर्ष पूर्व माता-पिता के लिए समस्या यह थी कि कक्षा पांचवी में अध्ययन करने वाला बच्चा स्कूल जाने में अनियमित था। लापरवाह रहता था। गांव की बोली बोलता था और बजाय घर में रहने के गांव के बाहर व खेतों में घूमता-फिरता था, और इसे ही माता-पिता गंभीर समस्या मानते थे।

१५ वर्ष पूर्व बच्चा कपड़े का बस्ता लेकर स्कूल जाने से इनकार करता था। उसे अच्छे जूतों एवं कपड़ों की दरकार थी। नए फैशन का कंपास बॉक्स उसे चाहिए था और बजाय साइकिल के यदि कोई बजाज स्कूटर पर उसे स्कूल छोड़ आए तो उसकी इज्जत बनी रहती थी, यह उस दौर की समस्या थी।

५ वर्ष पूर्व बच्चा स्कूल जाने के लिए गाड़ी की सुविधा की मांग करने लगा था। उसे मोबाइल भी चाहिए था। बच्चा यह चाहता था कि उसके शिक्षक गाड़ी पर आएं और स्कूल भी अत्याधुनिक हो। दोस्त के चुनाव की उसकी रीत, कपड़े एवं खाने-पीने का शौक, घूमने-फिरने एवं खेलने का शौक अब पूर्णतः बदल चुका है।

आज शहर की अच्छी स्कूलों में कक्षा पांचवी में अध्ययनरत ४० फीसदी बच्चे नियमित तौर पर कंप्यूटर का उपयोग करते हैं, फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, चेटिंग करते हैं, इंटरनेट का प्रयोग करते हैं एवं उनकी उम्र की अपेक्षा अधिक जानकार होते हैं। वयस्कों के लिए भी देखने योग्य न हो, ऐसी वीडियो क्लिप्स बिन्दास देखते हैं परन्तु माता-पिता को इस बात की ख़बर नहीं है। वजह यह कि, जब उनका जीवन-निर्माण हुआ तब ये समस्याएं नहीं थीं।

बच्चे के जीवन का लक्ष्य निरंतर बदलता रहता है, साथ ही अल्प एवं दीर्घकालिक अपेक्षाएं भी लगातार बदलती रहती हैं। इन सबके बीच, जीवन के ऊंचे लक्ष्य निर्धारित करने में माता-पिता, शिक्षक एवं आचार्य निश्चित रूप से मददगार हो सकते हैं।

घोड़ागाड़ी में बैठकर प्रतिदिन स्कूल जाने वाले बच्चे से जब उसके पिता ने पूछा, "तुम्हें जीवन में क्या बनना है?" तब बच्चे ने सहज अंदाज में जवाब दिया, "मुझे तो घोड़ागाड़ीवाला बनना है।" क्योंकि स्कूल आते-जाते बच्चे को हमेशा यही लगता कि उसके द्वारा देखी गई दुनिया में सर्वाधिक शक्तिशाली और नियंत्रणकर्ता कोई व्यक्ति यदि है तो वह घोड़ागाड़ीवाला है। यह सुनकर माता-पिता घबरा गए। उन्होंने स्कूल के आचार्य से मुलाकात की। आचार्य ने माता-पिता को वचन दिया कि वे बच्चे के जन्मदिन पर उनके घर अवश्य आएंगे। बच्चे के जन्मदिवस के अवसर पर स्कूल के आचार्य दो गिफ्ट बॉक्स लेकर उसके घर गए। जन्मदिवस का उत्सव शुरू होने पर दोनों बॉक्स खोले गए। पहले बॉक्स में था एक घोड़े से चलने वाली घोड़ागाड़ी का मॉडल और दूसरे बॉक्स में था सात घोड़ों से चलने वाला कृष्ण के रथ का अद्भुत दृश्य। जब बच्चे से पूछा गया कि उसे इनमें से कौन-सी घोड़ागाड़ी चाहिए, तब बच्चे ने सात घोड़े से चलने वाली घोड़ागाड़ी को अपनी पसन्द बताया। फिर बच्चे को समझाया गया कि सात घोड़ों वाला रथ चलाने के लिए कृष्ण एवं अर्जुन जैसा बनना पड़ता है और कठोर परीक्षाएं पास करनी पड़ती है। बच्चे के जीवन का लक्ष्य बदल गया। स्कूल की घोड़ागाड़ी अब तुच्छ लगने लगी और वह तेजी से आगे बढ़ने के लिए आतुर हो उठा। आगे चलकर उस बच्चे ने एक सफल शासक, प्रशासक, दूरदर्शी एवं अत्यंत प्रतिभाशाली व्यक्ति के तौर पर नाम रोशन किया, जिसे हम बरोड़ा राज्य के स्वप्नदृष्टा श्रीमंत सयाजीराव गायकवाड़ के नाम से जानते हैं।

आज शहर की अच्छी स्कूलों में कक्षा पांचवी में अध्ययनरत ४० फीसदी बच्चे नियमित तौर पर कंप्यूटर का उपयोग करते हैं, फेसबुक का इस्तेमाल करते हैं, चेटिंग करते हैं, इंटरनेट का प्रयोग करते हैं एवं उनकी उम्र की अपेक्षा अधिक जानकार होते हैं।

Share: Facebook Twitter Google Plus Linkedin
Home Link