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बच्चों को वास्तव में क्या सिखाना चाहिए?

बच्चों को वास्तव में क्या सिखाना चाहिए?

बच्चों को पढ़ाने के लिए अधीर बाप पक्षियों एवं जानवरों के नाम, पहाड़ा इत्यादि तो सीखाते हैं। शीघ्रता के साथ होमवर्क करना सीखाते हैं। स्पर्धा में शिरकत करना सीखाते हैं। परन्तु सीखाने योग्य कई महत्वपूर्ण बातें कभी नहीं सीखाते और कुल मिलाकर शिक्षा में सफल होने वाले बच्चे जीवन-निर्माण एवं व्यवहारकुशलता में निरे असफल साबित होते हैं। ऐसे में, बच्चों को वास्तव में क्या सिखाना चाहिए इस दिशा में यह लेख अवश्य ही मददगार सिद्ध होगा।

  • सर्वप्रथम तो यह सिखाना चाहिए कि हालात प्रतिकूल हों उस स्थिति में अनुकूलता कैसी साधी जाए। वजह यह कि, आम तौर पर बच्चे विपरीत परिस्थिति में ही असफल होते हैं।
  • बच्चों को सिखाना चाहिए कि, असफलता सफलता का एक भाग है और सफल होने के लिए असफलताएं भी उतनी ही जरूरी हैं।
  • उसे सिखाना चाहिए कि अच्छे मित्र किस तरह बनाए जाने चाहिएं, किस तरह उस दोस्ती को टिकाए रखा जाना चाहिए और दोस्तों के साथ संबंधों की क्या सीमाएं होनी चाहिएं।
  • खुद के भीतर मौजूद प्रतिभा को किस तरह बाहर लाया जाए और अवसर मिलने पर उसे किस तरह लपका जाए, यह भी उसे सिखाना चाहिए।
  • उसे यह विशेष तौर पर सिखाना चाहिए कि सादगी, प्रामाणिकता, सकारात्मक रवैया और सहनशीलता जीवन के मजबूत स्तंभ है।
  • उसे यह सिखाना चाहिए कि पैसा कमाना सरल है लेकिन उसे बचाना अत्यंत मुश्किल है। अतः पैसे की बचत किस तरह करनी चाहिए और उसकी उचित व्यवस्था कैसे करें, यह उसे सिखाना चाहिए।
  • उसे यह सिखाना चाहिए कि अपनी चीजें, नास्ता, उपकरण आदि दूसरों के साथ साझा करते हुए उपयोग करनी चाहिए और जो जरूरतमंद हो उसे पहले देनी चाहिए।
  • परिस्थिति प्रतिकूल हो और असफलता चारों ओर से घेर ले ऐसे में, कल सफलता को गले लगाना ही है, ऐसी जीवटता अपने भीतर पैदा करना सिखाना चाहिए।
  • वस्तु की कीमत और मूल्य के बीच का अंतर, बचत और मितव्ययता, जरूरत और शौक, स्वतंत्रता और स्वच्छंदता के बीच का फ़र्क सिखाना चाहिए।
  • लक्ष्य और अपेक्षाओं के बीच का अंतर भावनाओं से करने के बजाय परिश्रम के पसीने से कैसे किया जाए, यह सिखाना चाहिए।
  • मित्र या रिश्तेदार उपेक्षा या अपमान करें तब उसे चुनौती मानकर जीवन में किस तरह अपना स्थान बनाएं, यह सिखाना चाहिए।
  • बच्चे को यह सिखाना जरूरी है कि, परीक्षा क्या जानते हैं इसके लिए नहीं है, क्या नहीं जानते यह जानने के लिए है। साथ ही परीक्षा आपकी होशियारी, कौशल, क्षमता, प्रस्तुति और चपलता की कसौटी लेती है न कि सिर्फ ज्ञान की।
  • वस्तुओं की खरीदारी किस तरह करें, वजन की पुष्टि कैसे करें, पैमानों के बीच का अंतर, अलग-अलग अनुपात, बस अड्डा, रेलवे स्टेशन, डाक घर या बैंक का लेन-देन एवं टेलीफोन नंबर उसे विशेष रूप से सिखाना चाहिए।
  • प्रतिकूल हालातों में आवश्यक पुलिस एवं आपातकालीन टेलीफोन नंबर, इमरजैंसी कोड उपयोग करने की पद्धति और घर पर अकेले हों तब सलामती संबंधित मुद्दे, स्कूल आने-जाने की आचार संहिता सीखानी चाहिए।
  • अनजान व्यक्तियों के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, आकस्मिक एवं प्राकृतिक आपदाओं के बीच किस तरह शांत एवं स्वस्थ रहा जाए, यह विशेष तौर पर सिखाना चाहिए।
  • प्रतिकूल हालातों में मदद अवश्य मिलेगी, ऐसी आशा जिंदा कैसे रखी जाए, यह खास तौर पर सिखाना चाहिए। इसके लिए अच्छी कथाओं का उपयोग किया जा सकता है।
  • अच्छी शिष्टता, दूसरों की प्रशंसा करने की आदत, अच्छे शब्दों का उपयोग, शिष्टाचार, टेलीफोन पर बातचीत करने की रीति तथा गुस्से को काबू करने की रीति बच्चे को सीखाने के लिए माता-पिता को काफी प्रयास करना चाहिए।

बात-बेबात पर गुस्सा होने वाले एक बच्चे को उसके शिक्षक ने सौ कीलें और एक हथौड़ी दी और कहा कि जब कभी तुम्हे गुस्सा आए तब सामने स्थित वृक्ष पर यह कीलें ठोंक दिया करो। बच्चे ने यह बात स्वीकार ली। नतीजा यह हुआ कि, धीरे-धीरे कील ठोंकना कम होता चला गया। फिर शिक्षक ने कहा कि अब सारी कीलें एक-एक करके निकाल लो। वृक्ष पर अंकित कील के घाव एवं निशान बताते हुए शिक्षक ने कहा कि, किसी को दुःख पहुंचाने के बाद सॉरी तो कहा जा सकता है, परन्तु उसके ह्रदय में भोंकी गई वेदनारूपी कीलों का जख़्म किसी भी तरह से मिटाया नहीं जा सकता। शिक्षक की यह बात बच्चे के मन पर कुछ ऐसा असर कर गई कि उस बच्चे का व्यवहार ही बदल गया।

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