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बच्चे की सीखने की पद्धति

बच्चे की सीखने की पद्धति

माता-पिता को यह सीखने की जरूरत है कि उनका बच्चा किस तरह से सीखता है। एक ही घटना को लेकर अलग-अलग बच्चों की प्रतिक्रिया भिन्न-भिन्न होती है। एक सरीखे माहौल में पल-बढ़ रहे बच्चों में पसन्द-नापसन्द की प्रतिक्रिया में भी विभिन्नता देखने को मिलती है। इसी तरह, सभी बच्चे एक सरीखे माहौल में सीखते हैं। अलग-अलग तरह से सीखने की प्रक्रिया और सीखाने की पद्धति को समझना अत्यंत जरूरी है। इसीलिये कहा गया है कि "आप बच्चे को कुछ सीखाते हैं और उसे समझ न आए तो उसमें बच्चे का दोष नहीं है।" आप कुछ इस तरह सिखाइए न कि उसे समझ में आए।

एक कुत्ते को बीमारी की वजह से जीव-जंतुओं के डॉक्टर के पास ले जाया गया, जहां डॉक्टर ने लिक्विड दवाई दी। घर पहुंचने के बाद मालिक ने कुत्ते को चम्मच के जरिए दवाई पिलाने की बहुत कोशिश की। चारों ओर से उसे पकड़कर, उसका मुंह खोलने का प्रयास किया गया। ऐसा करते वक्त दवाई की शीशी जमीन पर गिरकर टूट गई और कुत्ता जमीन पर फैली दवाई को चाटने लगा। इसका अर्थ यह कि यह सीखने की जरूरत है कि प्रत्येक जीव आपकी पद्धति को स्वीकार करता है या नहीं।

(१)पठन द्वारा सीखने वाले बच्चेः
एक कक्षा में तीस से चालीस फीसदी बच्चे ही ऐसे होते हैं जो पठन के जरिए सीखना पसन्द करते हैं। पठन में जिनकी रुचि होती है। पढ़ा हुआ जिन्हें याद रहता है और पठन-कार्य में जिन्हें ऊब नहीं आती। पढ़ना उन्हें आनंदमय लगता है। पठन के दौरान उनकी एकाग्रता स्थिर होती है।

(२) श्रवण द्वारा सीखने वाले बच्चेः
कक्षा में बीस फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं जिनकी रुचि सुनकर सीखने में होती है और शिक्षक जो कहते हैं उसे सुनकर ग्रहण कर लेते हैं। सुनना उनके लिए सहज होता है। शिक्षक की आवाज, उसकी गूंज, उसका अंदाज, भाषा की मिठास, उच्चारण की गति और शिक्षक के हावभाव के साथ उनका सामंजस्य बेहतर होता है। ऐसे बच्चे पढ़कर सीखना कम पसन्द करते हैं।

(३) प्रवृत्ति के जरिए सीखने वाले बच्चेः
कक्षा में तकरीबन पंद्रह फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं जिन्हें प्रवृत्तियों के जरिए सीखना पसन्द है। दृश्य-श्राव्य उपकरण, सीखने के साधन, प्रायोगिक उपकरण, प्रवृत्तियां और शिक्षक द्वारा उकेरी गई आकृतियां, ग्राफ, नक्शा, चार्ट एवं मॉडल्स उन्हें ज्यादा पसन्द होते हैं। इस तरह के बच्चे स्थिर बैठकर पढ़ने के बजाय घूमते-फिरते, संगीत सुनते हुए या फिर खेल-खेल में सीख लेते हैं।

(४) स्वयमेव सीखने वाले बच्चेः
कक्षा में दस फीसदी बच्चे ऐसे होते हैं जो सीखने के लिए स्वयं की पद्धतियां विकसित करते हैं जैसे कि, पठन करने के बाद लिखना, महत्वपूर्ण मुद्दों को याद रखना, मित्रों के साथ चर्चा करके सीखना आदि। कोई बच्चा किसी को समझाते-समझाते सीख लेता है। विषय में कुछ जोड़ते हुए उसे भिन्न तरीके से याद रखना, जिसमें प्रशंसा होती है उसे शीघ्रता से सीखना, शिक्षक मनोरंजन के साथ सीखाए तो जल्दी सीखना जैसे विविध प्रकार के सीखने के कौशल से बच्चे की समझ विकसित होती है।
पढ़ाई का समय, स्थल, माहौल और व्यवस्था को लेकर भी बच्चों की रुचि भिन्न-भिन्न प्रकार की होती है। कई मामलों में प्राकृतिक क्षति वाले बच्चों को सीखने में मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। आम तौर पर समय से पूर्व जन्म लेने वाले, प्रसूति के दौरान डॉक्टर की भूल की वजह से, माता के दूध के अभाव के कारण, बच्चे को अधिक मात्रा में दवाई देने के कारण, दृश्य या श्राव्य की कमजोरी की वजह से, पैदाइशी या आनुवंशिक कमजोरी के कारण, घर की समस्याओं के कारण, माता-पिता के बीच कलह की वजह से, उसके साथ होने वाले व्यवहार के कारण, उसके लिए जरूरी सुविधाओं में कमी की वजह से, ज्यादा छूट देने या फिर कड़े नियंत्रण की वजह से और मित्रों या कक्षा के माहौल जैसे कारणों की वजह से बच्चों में सीखने की कमजोरी आती है।

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