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बच्चों के परिप्रेक्ष्य में

बच्चों के परिप्रेक्ष्य में

सफल समाज असफल समाज
सफल समाज आने वाले सौ वर्षों को ध्यान में रखते हुए अपना आयोजन करता है, जिस आयोजन के केन्द्र में नई पीढ़ी होती है। असफल समाज आज की स्थिति को ध्यान में रखते हुए अपनी योजना बनाता है और उन योजनाओं के केन्द्र में सामाजिक समस्याएं होती हैं।
सफल समाज-व्यवस्था में नई पीढ़ी को अवसर मिलता है। असफल समाज-व्यवस्था में पुरानी पीढ़ी को महत्व दिया जाता है।
सफल समाज अपनी क्षमता का उपयोग शैक्षणिक व्यवस्था के लिए करता है। असफल समाज अपनी क्षमता का इस्तेमाल सामाजिक व्यवस्था के लिए करता है।
सफल समाज शहर के मध्य बच्चों के खेलने जितनी जगह छोड़ता है। असफल समाज जंगल के मध्य भी कंक्रीट के जंगल खड़े कर बच्चे का दम घोंट देता है।
सफल समाज नई पीढ़ी को ज्ञान, जानकारी और मूल्य की शिक्षा देने को सतर्क रहता है। असफल समाज नई पीढ़ी को अपनी रूढ़ियां, रिवाज और व्यवस्थाएं सीखाता है।
सफल समाज की व्यवस्था में एक आम परिवार भी उसके बच्चे को अवसर मिलेगा, इस भाव की निश्चिंतता के साथ सो सकता है। असफल समाज-व्यवस्था में अपने बच्चों के अधिकार छिन जाने के भय के साथ माता-पिता निरंतर जगते रहते हैं।
सफल समाज सर्वांगीण विकास एवं श्रेष्ठ मूल्यों का प्रचारक एवं उद्धारक होता है। असफल समाज सिर्फ सफलता, प्रतिशत और संपत्ति के गुणगान करने में ही रचा-पचा रहता है।
सफल समाज वह होता है जो समाज के बच्चों को समरसता और शालीनता के साथ सहजता, सौम्यता और सहनशीलता सीखा सके। असफल समाज नई पीढ़ी के लिए पैसा कमाने का साधन खड़ा करता है, परन्तु उसकी आड़ में भावनाहीन समाज और वृद्धाश्रम ही खड़े होते हैं।
सफल समाज सफलता के ग्राफ में छिपे बच्चे को देखने का प्रयास करता है। असफल समाज वह है जो सिर्फ बच्चे की सफलता के ग्राफ को देखता है।
सफल समाज समय का सम्मान करते हुए रूढ़ियों, रिवाजों और मूल्यों को योग्य तरीके से बदलता रहता है, ताकि नई पीढ़ी सलामती का अनुभव करे। असफल समाज वह है जो रूढ़ियों, रिवाजों और मूल्यों को जकड़कर रहता है और नई पीढ़ी को उसके अनुकूल बनाने के वास्ते हठधर्मी होता है।
सफल समाज आदर्शों के प्रीति-भोज में ईमानदारी, सादगी और निष्ठारूपी पकवान परोसता है। असफल समाज वैभव के प्रीति-भोज में स्पर्धा, दिखावा और दंभ का भोजन परोसता है।
सफल समाज स्कूलों में दान देकर नई पीढ़ी के निर्माण के लिए शैक्षणिक पर्यावरण का जतन करता है। असफल समाज महज धार्मिक कार्यों में दान देकर सामाजिक पर्यावरण में भव्यता का प्रदूषण फैलाता है।
सफल समाज बच्चे की प्रतिभा, कौशल, दिलचस्पी और रुचि का संवाहक होता है। असफल समाज सफल बच्चों के सम्मान और आम बच्चों की असफलता का प्रचारक होता है।
सफल समाज आम परिवारों की वेदना तक पहुंचकर उनके संतानों की उंगली पकड़ता है और उसे सफलता की दिशा में ले जाता है। असफल समाज सुखी परिवारों के बच्चों की उंगली पकड़कर समाज के प्रतिष्ठित मंच तक ले जाता है।
अपना कल्याण हमें स्वयं करना होगा, इस निश्चय के साथ आज ही विचार करने वाला समाज सफल समाज होता है। और ऐसी विचारधारा के परिवेश में नई पीढ़ी सक्षम, प्रतियोगी, काबिल, महत्वाकांक्षी, दूरदर्शी, सहनशील और विकास के अनेक सीमाचिह्न को हासिल करने वाली बनती है। आलस्य के तकिये पर सिर रखकर, कोई आकर हमारा कल्याण करेगा, ऐसे विचारों में खोया समाज असफल समाज होता है। और इस प्रदूषण के बीच उसकी नई पीढ़ी डरपोक, कायर, गैर-महत्वाकांक्षी, प्रतियोगिता से दूर भागने वाली, हैसियत और पहुंच की परिकल्पना में खोई रहने वाली, नकारात्मक, ईर्ष्याभाव वाली और असहनशील बनती है।

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