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बच्चे की सलामतीः घर और स्कूल में

बच्चे की सलामतीः घर और स्कूल में

सलामती की अज्ञानता के कारण दुनिया भर में प्रतिवर्ष लाखों बच्चे छोटी-मोटी चोट का शिकार बनते हैं। यदि माता-पिता घर पर एवं घर के आसपास चहलकदमी करने की कोशिश करने वाले बच्चों का थोड़ा ध्यान रखें तो लाखों बच्चों का जीवन बच सकता है।

घर पर चलना सीख रहे बच्चों के लिए रसोईघर सर्वाधिक जोखम भरा स्थान है। गैस या स्टोव पर उबलती वस्तुएं, उबालकर नीचे रखे गए बर्तन, आसपास रखी हुई चाय-कॉफी, गर्म कूकर, टोस्टर, ओवन, दिया, माचिस या गर्म बर्तनों से हजारों बच्चे झुलस जाते हैं। घर की रेलिंग, बालकनी, प्लेटफार्म या फर्नीचर से गिरने का खतरा, घर में उपयोग किए जाने वाले इलेक्ट्रिक उपकरण, इलेक्ट्रिक सॉकेट या फिर बिजली के खुले तारों के कारण पैदा होने वाला खतरा, घर के अंदर रखे हुए केमिकल्स, जंतुनाशक दवाएं, एसिड या सफाई के विविध पाउडर, क्रीम, लिक्विड, कॉस्मेटिक्स, शेम्पु और किसी और लेबल की बोतल में भरी कोई अन्य दवाई बच्चों के लिए खतरा बन सकती है। घर में रखी हुई पानी से भरी बाल्टियां, धारदार बाल्टी, पानी भरने का ड्रम और भूमिगत टंकी बच्चों के लिए जान का खतरा बन सकती है। घर में उपयोग की जाने वाली सीढ़ियां, घर में विविध जगहों पर लगे धारदार पत्थर या कांच या नुकीला फर्नीचर भी बच्चे के लिए जोखिम भरा साबित हो सकता है। घर में रोजमर्रा इस्तेमाल की जाने वाली कैंची, सुई या शार्पनर और ब्लेड भी बच्चे के लिए खतरा बन सकती है। घर में हवा की दिशा में लगाए गए दरवाजे या दरवाजे की तीक्ष्ण धार बच्चे की उंगलियों और उसकी सलामती के लिए खतरे के समान है। बच्चों को खेलने के लिए दिए जाने वाले खिलौने जैसे कि- गुलेल, बाण, भाला, टॉय गन भी खतरनाक साबित हो सकती है। घर पर रखे हुए पटाखे, रंग और मोती-मनका भी बच्चे की सलामती के लिए खतरा है। टीन की चादर, टीन से बना ड्रम, गद्दे रखने की आलमारी, ऑटोमेटिक लॉक होने वाली सूटकेस, ऑटोमेटिक लॉक होने वाला दरवाजा और बर्तन व अनाज रखने का पिटारा बच्चे के लिए जानलेवा खतरे के समान है। अत्यंत चिकनी फर्श व सीढ़ी भी बच्चे की सलामती के लिए खतरा पैदा करती है।

यहां एक घटना का जिक्र करना गैरजरूरी नहीं होगा। बात सौराष्ट्र क्षेत्र की है। यहां एक किसान ने अनाज भरने के लिए जो पिटारा खरीदा था वह उसके चार बच्चों की मौत की वजह बन गया। हुआ यूं कि खेल-खेल में किसान की तीन बेटियां और एक बेटा उस पिटारे के अंदर छिप गए और ढक्कन बंद कर लिया। लेकिन जब बाहर निकलने की कोशिश की तो ढक्कन खुला ही नहीं। ढक्कन खोलने की हरसंभव कोशिश के दौरान उन बच्चों के नाखुन भी उखड़ गए थे। अंजाम यह हुआ कि उन बच्चों को अपनी जान गंवानी पड़ी।

नई चीजों को जानने की उत्सुकता, जिज्ञासा और सीखने के लिए उतावले बच्चे ऐसी समस्याएं पैदा करते हैं जो हमारी कल्पना से भी परे है।

खुले सिक्के, रबर, पेन्सिल या पेन का टुकड़ा, बटन, दलहन के दाने या मूंगफली-चना एवं खिलौने का भाग नाक या मुंह में घुसाने की वजह से दम घुटने के हजारों मामले प्रकाश में आ चुके हैं। मोटरसाइकिल पर बैठते या उतरते वक्त बच्चों के साइलेंसर से झुलसने एवं गाड़ी के दरवाजे से बच्चों की उंगली कटने के भी हजारों मामले बनते हैं। इसी तरह, सिर्फ कांच के शटर वाली खिड़कियों या बालकनी से या फिर बालकनी के आसपास रखे टेबल जैसे साधनों पर चढ़कर बच्चों के नीचे गिरने के हजारों मामले हमारे आसपास घटित होते हैं। बेबीवॉकर का उपयोग करने वाले या बेबीवॉकर लेकर बाहर निकलने वाले माता-पिता के लिए भी सावधानी रखना बेहद जरूरी है।

रोड पार करते, मैदान या बगीचे में खेलते, बाजार में हमारे साथ चलते बच्चे जान के जोखिम से अनजान या कहें कि बेफिक्र होते हैं। खाने-पीने की चीजों के प्रति लालच का भाव रखने वाले बच्चों के अनजान व्यक्तियों के साथ चले जाने के अनगिनत मामले आज चिंता का विषय बन चुके हैं। इसी तरह, पैसे मिलने पर चॉकलेट या आइसक्रीम खाने के लिए निकल पड़ने वाले बच्चों की सलामती भी खतरे के दायरे में रहती है। सेफ्टी बेल्ट के बिना वैन, ऑटोरिक्शा या गाड़ी में यात्रा करने वाले बच्चों की सलामती पर भी जोखिम मंडराता है। गाड़ी के अगले हिस्से में बैठने वाले बच्चों, गियर या स्टीयरिंग व्हील के पास बैठने वाले बच्चों द्वारा गाड़ी चलाकर दुर्घटना करने के कई मामले सामने आ चुके हैं।

घर के पालतू कुत्ते, बिल्ली या गली के कुत्तों की वजह से बच्चों की जान खतरे में पड़ सकती है। कुत्ते को सताने पर, उसके साथ खेलने या लकड़ी से मारने का प्रयास करने पर घर के पालतू कुत्ते बच्चों पर हमला कर सकते हैं।

लिहाजा, माता-पिता को चाहिए कि वे बच्चों को बजाय डराने के उन्हें इस बारे में समझाएं और सलामती के आवश्यक कदम उठाएं। संभव हो तो बच्चों को घर पर अकेला नहीं छोड़ना चाहिए। घर का फर्नीचर, बाथरूम, स्विमिंग पूल और चीज-वस्तुएं रखने की जगह बच्चों की सलामती को ध्यान में रखते हुए बनवानी चाहिए।

कुत्ते या बिल्ली का पंजा लगने या मामूली रूप से काटने की वजह से बच्चे को ६ से १२ महीने बाद भी रैबीज़ की जानलेवा समस्या उत्पन्न हो सकती है। ऐसी स्थिति में एंटी रैबीज़ टीके (वैक्सीन) का पूरा कोर्स करने में ही बच्चे की सलामती निहित है।

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