मुख्यतः देखा जाए तो माता-पिता ही बच्चे को सफल या असफल बना सकते हैं। माता-पिता का दृष्टिकोण, मानसिकता, समझबूझ, शिक्षा, जागृति, अनुकूलन और बच्चे को शिक्षित करने का कौशल ही बच्चे की सफलता या असफलता के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण होता है।
जो माता-पिता बच्चे में छुपी हुई शक्तियों को ढूंढने का प्रयास करते हैं और उस हिसाब से उसे अवसर प्रदान करते हैं वैसी स्थिति में बच्चे की सफलता की संभावना बढ़ जाती है।
जो माता-पिता अपनी संतानों को हमेशा सकारात्मक दृष्टिकोण रखना सिखाते हैं और उसे निरंतर स्वीकृति प्रदान करते हैं, वैसे बच्चे अधिकांशतः सफल होते हैं।
जब बच्चा सीखने में असफल हो जाता है तब धैर्य या संयम खोए बिना उसके साथ डटे रहे और असफलता के दलदल से ऊपर उठना सीख सके, वैसे बच्चे ज्यादा सफल होते हैं।
ऐसे माता-पिता जो यह समझ सकें कि उनकी संतान ईश्वर का एक अनोखा सृजन है और ईश्वर ने उसे अलग से निर्मित किया है, उनकी संतानें प्रतिस्पर्धा के माहौल में टिक सकती है।
यदि माता-पिता परीक्षा के परिणाम के बजाय बच्चे के आत्मविश्वास एवं उसकी समझबूझ का मूल्यांकन करना सीख लें, तो उनके बच्चे सहजता के साथ सफलता हासिल कर सकते हैं।
माता-पिता यह समझ लें कि उनकी संतान सलाह या निर्देश से नहीं बल्कि उनके व्यवहार, विचार, भाषा एवं संस्कारों से ही सीख ग्रहण करेंगी, तो यह प्रक्रिया सहज बन जाती है।
जो माता-पिता यह मानते हैं कि बच्चे की शिक्षा में इस्तेमाल होने वाला पैसा खर्च नहीं निवेश है और यह उपयुक्त तरीके से होना चाहिए, तो ऐसे बच्चों के विकास की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
शिक्षा पर किसी अमीर, सुखी एवं समृद्ध घर का एकाधिकार नहीं है परन्तु यह तो प्रत्येक व्यक्ति को मिलने वाला एक अनमोल अवसर है। इस किस्म की समझ बच्चे के विकास में सहायक होती है।
ईमानदार, सात्विक एवं वास्तविक निरंतरता में जीने वाले परिवारों में बच्चे की सफलता के अवसर ज्यादा होते हैं।
जहां बच्चे को कुछ सीखने के लिए थोड़ा संघर्ष करना पड़े और जिम्मेदारी उठाने का अवसर मिले तथा हर पल कोई मदद करने वाला मौजूद न हो, ऐसी स्थिति में उस बच्चे की सफलता की संभावनाएं बढ़ जाती हैं।
यदि बच्चों को सही समय पर प्रोत्साहन दिया जाए, उनकी उपलब्धियों को सराहने के साथ उन्हें इस बात का एहसास भी कराया जाए तो बच्चे ऐसी सफलताओं को बखूबी दोहराते हैं।
जो बच्चे जीवन के सत्य तथा तथ्य को निकट से देखना सीखें, स्वीकारना सीखें तो ऐसे बच्चे कठिन हालात में भी आगे बढ़ते हैं।
बच्चे के आनुवंशिक लक्षण, उसके मित्र, स्कूल, शिक्षक, परिस्थिति एवं सुखद या दुखद अनुभव उसे सफल या असफल बनाने में अहम भूमिका अदा करते हैं।
ज्यादातर मामलों में कमजोर नतीजे लाने वाली संतानों के माता-पिता जीवन की सफलता को लेकर संदिग्ध बन जाते हैं और यह मानने लगते हैं कि सिर्फ बेहतर नतीजे ही बेहतर जीवन का आधार है। इसके चलते वे नतीजों के आधार पर बच्चे की नकारात्मक देखभाल करने लगते हैं जिससे बच्चा असफल हो जाता है।
माता-पिता को यह समझना होगा कि जीवन की सफलता में नतीजों का महत्व 25 फीसदी है। परन्तु आत्मविश्वास, निडरता, सहनशीलता, सौम्यता एवं सहजता जैसे मूल्यों का महत्व 100 फीसदी है।