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बच्चे के विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक

बच्चे के विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक

स्वस्थ शिशु विकास के लिए जीवन के आरंभिक सात वर्ष सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। बच्चे की आनुवंशिक क्षमता और सीखने के अवसर शारीरिक एवं मानसिक विकास पर प्रभाव डालने वाले कारक अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। सीखने के लिए बच्चा कुछ पैदाइशी क्षमताएं, रुचि, दिलचस्पी और कौशल लेकर पैदा होता है। परन्तु उसे कैसा अवसर मिलता है, माता-पिता कैसा माहौल देते हैं यह बहुत अहम है। कई बार साहस या क्षमता बताने की रुचि वाले बच्चों को भी प्रतियोगिता, निंदा एवं तुलना कर भयभीत बना दिया जाता है। माता-पिता का यह कर्तव्य है कि बच्चे की आनुवंशिक क्षमता को स्वस्थ, अनुकूल एवं प्रोत्साहक माहौल मिलता रहे और इसलिए ही माता-पिता को निम्नांकित कारकों को ध्यान में रखना चाहिएः

शारीरिक स्वस्थताः
प्रवृ्त्ति करने की स्वतंत्रता, पसंदीदा प्रवृत्ति करने का प्रोत्साहन, सीमाओं से बाहर निकलने के लिए माता-पिता का मार्गदर्शन और घर का स्वस्थ खाना बच्चे को हमेशा तंदुरुस्त रखता है।
प्रवृत्तियों पर नियंत्रण, नकारात्मक निर्देश और अत्यधिक नियंत्रण (कंट्रोल) बच्चे को हताश बनाता है। हताशा से बच्चा चिड़चिड़ा और आलसी बनता है। नियंत्रण एवं बीमारी की वजह से बच्चा कई बार गुस्सैल और जिद्दी भी बनता है। ऐसे बच्चों में तनाव, भय और चिंता भी देखने को मिलती है। माता के स्तनपान से जिन बच्चों का लालन-पालन होता है वे ज्यादा स्वस्थ एवं ऊर्जावान होते हैं। इन बच्चों में सीखने एवं ग्रहण करने की (Learning & Accepting) क्षमता ज्यादा होती है।

आनंदपूर्ण माहौलः
आनंद एवं तंदुरुस्ती एक-दूसरे के पर्याय हैं या कह सकते हैं कि तंदुरुस्त बच्चे ज्यादा प्रसन्न होते हैं। हमेशा खुश रहने वाला बच्चा अधिक तंदुरुस्त होता है। हमेशा खुश रहने वाला बच्चा संबंधों के विकास में, दूसरों को आकर्षित करने में और अपना काम करने में अव्वल होते हैं। दुःख एवं तनाव का माहौल बच्चे की क्षमता को कम करता है। ऐसे बच्चे नकारात्मक, कायर, रक्षात्मक और गैर साहसिक होते हैं। माता-पिता को यह समझना होगा कि साधन-सुविधा के बजाय उनका व्यवहार, माहौल और रवैया बच्चे को ज्यादा खुश रख सकता है।

आचरण और व्यवहारः
स्वस्थ शिशु विकास के लिए सकारात्मक आचरण, वास्तविक जीवन के साथ जुड़ाव, हासिल किया जा सके ऐसा लक्ष्य बच्चे को ज्यादा सफल बनाते हैं और इन हालातों में असफल बालक भी हालात के सामने पुनः खड़ा होता है। उसके भीतर छिपी क्षमता को अवसर प्रदान करने की जिम्मेदारी माता-पिता की है। खुद के बनाए ढांचे में बच्चे को ढालने के बजाय ईश्वर के बनाए गए ढांचे में स्वयं के आचरण एवं रवैये को ढालना बच्चे के लिए कहीं ज्यादा श्रेयस्कर है। और इसलिए ही नई चीजें सीखाने के दौरान माता-पिता द्वारा दर्शायी गई रुचि, प्रयास, समय एवं धीरज बच्चे को सफल बनाते हैं। मित्र का चयन करने के अलावा बच्चे को सकारात्मक रवैया सीखाने में माता-पिता को निरंतर प्रयास करना पड़ता है।

परिवार में बच्चे का स्थान और स्पर्धाः
आम तौर पर परिवार के पहले बच्चे को ज्यादा ध्यान, मदद, मार्गदर्शन, सहायता एवं महत्व मिलता है। ऐसे बच्चे अधिकांशतः पराश्रित (डिपेन्डेंट) बनते हैं। सामान्य रूप से परिवार के पहले बच्चे को डॉक्टर की जितनी जरूरत पड़ती है, उतनी जरूरत दूसरे बच्चे को नहीं पड़ती। परिवार में अपना अधिकार हासिल करने के लिए दूसरे बच्चे को जो संघर्ष और प्रयास करना पड़ता है, वह उसे ज्यादा मजबूत बनाता है। दो संतानों के बीच तीन या चार वर्षों से अधिक समय का अंतर कभी-कभी समस्याएं पैदा कर सकता है। संयुक्त एवं एकल परिवार के बच्चों के बीच के रवैये में काफी अंतर देखने को मिलता है। इसी तरह, परिवार के दो बच्चों के बीच की स्पर्धा, तुलना या परिवार के सदस्यों की टिप्पणी उसके व्यक्तित्व पर बड़ा असर डालती है।

सलामतीः
सलामती के माहौल के बीच बड़े होने वाले बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से अधिक स्वस्थ होते हैं। ऐसे बच्चे आत्मविश्वास से भरपूर, स्पष्ट अभिव्यक्ति और नेतृत्व क्षमता वाले होते हैं। सलामती के भाव के साथ जिन बच्चों की परवरिश होती है वे ध्यान देने अर्थात चित्त की एकाग्रता के अलावा सीखने में सक्षम व परिपक्व तो होते ही हैं साथ ही सामाजिक संबंध विकसित करने में असलामत बच्चों के मुकाबले ज्यादा सक्षम होते हैं।
निरंतर नकारात्मक रवैया, टीका-टिप्पणी और असलामती के माहौल के बीच बड़े होने वाले बच्चों में आत्मविश्वास का अभाव होता है और लोगों के साथ संबंध बनाने के मामले में वे डरपोक होते हैं। सामान्य असफलता से भयभीत होने वाले, संघर्ष के दौरान टिके रहने में कठिनाई का अनुभव करने वाले ये बच्चे अपनी जेनेटिक पोटेन्शियालिटी यानी आनुवंशिक संभावनाओं का उपयोग कर पाने में असमर्थ होते हैं।
इसके अतिरिक्त, बच्चे की जाति, तनाव, माता-पिता के बीच संबंध, प्रोत्साहन देने का तरीका, स्कूल का माहौल, सहअभ्यास प्रवृत्तियां और परिवार की महत्वाकांक्षाएं स्वस्थ विकास पर बड़ा प्रभाव डालती है।

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