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नौ वर्ष के बच्चों को क्या सिखाना चाहिए?

नौ वर्ष के बच्चों को क्या सिखाना चाहिए?

  • अपनी जरूरतें, समझ, मांग-समस्या पेश करना एवं स्पष्ट चर्चा करना सिखाना चाहिए।
  • अपने कार्य के लिए दूसरे से अनुरोध कर किस तरह उसे मनाया जाए, यह अवश्य सिखाना चाहिए।
  • अंग्रेजी माध्यम में अध्ययनरत बच्चों को सामान्य अंग्रेजी बोलना, अपने विचार व्यक्त करना और वार्तालाप करना सिखाना चाहिए।
  • यदि उसकी अपनी कोई समस्या हो तो उस संबंध में माता-पिता के साथ खुलकर चर्चा करना सिखाना चाहिए।
  • वस्तु की खरीदी करना, उसका मूल्य जानना, उसकी गुणवत्ता जानना एवं मूल्य परखना सिखाना चाहिए।
  • कक्षा में सभी विद्यार्थियों के साथ तालमेल बिठाना और शिक्षक के समक्ष अपनी बात पेश करना उसे अवश्य सिखाना चाहिए।
  • कक्षा-सातवीं में पढ़ने वाले बच्चे को उसकी मातृभाषा अच्छी एवं सच्ची तरह से लिखना एवं पढ़ना सिखाना चाहिए। सुलेख व सुपठन में रुचि होनी चाहिए, इस तरह से अभिव्यक्ति का विकास होता है।
  • बैंक, डाकघर, रेलवे स्टेशन, पुलिस स्टेशन, फायर ब्रिगेड, इंटरनेट, कंप्यूटर का सामान्य ज्ञान एवं टेलीफोन नंबर हासिल करने समेत उसके उपयोग, व्यवहार एवं मदद लेने की रीति की समझ विकसित होनी चाहिए।
  • छोटे भाई-बहन की देखभाल किस तरह करनी चाहिए, किस तरह से उपयोगी हो सकें, घर के बड़े-बुजुर्गों कि मदद किस तरह से कर सकें और माता-पिता जब ऑफिस से लौटें तब उनके लिए वह क्या कर सकता है, इसकी उसे जानकारी होनी चाहिए।
  • कक्षा-सातवीं के बच्चे को बटन लगाना, सुई-धागे का इस्तेमाल करना, सब्जी-भाजी काटना, चाय-कॉफी बनाना, फ्रिज, ओवन, गैस, डिश वॉशर का उपयोग करना, घर की सफाई और स्वच्छता बनाए रखने के साथ ही सारा कुछ मेन्टेन करना अवश्य सिखाना चाहिए।
  • बिजली के प्वाइन्ट, इलेक्ट्रिक एप्लायन्सेज, कंप्यूटर की देखभाल, टीवी का उपयोग, कोई भी इलेक्ट्रॉनिक्स उपकरण, मोबाइल को चार्जिंग करना एवं संभालकर रखना सिखाना चाहिए।
  • यौन अंगों के बारे में बुनियादी फ़र्क और अपने अंगों की सफाई, स्वच्छता एवं शारीरिक विकास की वजह से शरीर में होने वाले बदलावों की जानकारी बच्चे को निश्चित रूप से देनी चाहिए। जो माता-पिता अपने बच्चों को यौन शिक्षा (सेक्स एजुकेशन) प्रदान करने में संकोच करते हैं या इस बारे में स्पष्ट मत नहीं रखते, उन्हें चाहिए कि वे बच्चे की उम्र से संबंधित समस्याओं-जिज्ञासाओं के मुताबिक बाजार में मिलने वाली किताब लाकर घर में रखें। बच्चे स्वयं ही पढ़ लेते हैं।
  • अपने बच्चे के व्यवहार, नियमितता, पढ़ाई से संबंधित शिकायत होने पर माता-पिता को एक ऐसी व्यवस्था अवश्य खड़ी करनी चाहिए जिसमें बच्चा माता-पिता व शिक्षक की सहायता लेने, अपनी बातों की प्रस्तुति करने एवं सुधार की दिशा में समुचित कदम बढ़ा सके।
  • कक्षा सातवीं के बच्चे को अपना बस्ता, किताबें, जूते, कपड़े आदि वस्तुओं को सुसज्जित तरीके से रखना, संभालना एवं मेन्टेन करना आना चाहिए। स्वयं के कपड़े धोना एवं सुखाना भी उसे सिखाना चाहिए।
  • कक्षा-सातवीं के पश्चात माता-पिता को बच्चों को लंबी यात्रा, वेकेशन एडवेन्चर कैम्प और स्वयं से कुछ दिनों तक दूर रह सके ऐसा अवसर अवश्य देना चाहिए।
  • कक्षा-सातवीं से बच्चों के मनपसंद विषयों, उनकी दिलचस्पी एवं दृष्टिकोण का विकास हो ऐसे अवसर, मार्गदर्शन, करियर निर्माण, देखने-समझने लायक स्थल, मिलने योग्य व्यक्तियों से मुलाकात एवं जीवन में संगीत, चित्र या पठन का शौक विकसित करने की अच्छी व्यवस्था माता-पिता को करनी चाहिए।
  • कक्षा-सातवीं यानी कि 12 से 13 वर्ष की उम्र के बच्चे शारीरिक बदलाव व किशोरावस्था (टीन एज) में प्रवेश के चलते कुछ उग्र, बेचैन एवं तनावयुक्त रहते हैं, प्रतियोगिता के दबाव के अलावा अपनी छवि एवं व्यक्तित्व में बदलाव को महसूस करते हैं। ऐसे समय में माता-पिता को बच्चों का बहुत ज्यादा ध्यान रखना चाहिेए।
  • हमारी स्कूल की छात्राओं के विश्राम कक्ष में रखी श्रीमती डॉ. आरती कस्वेकर लिखित पुस्तक ‘तारुण्य शिक्षण अने प्रजनन स्वास्थ्य’ खूब पढ़ी गई है। किशोर बच्चे थोड़े स्वाभिमानी, हठधर्मी, विरोध करने वाले और स्वयं के सच्चे होने की मान्यता रखते हैं, ऐसे में, उन्हें शांति, धैर्य एवं उनके स्वाभिमान को चोट न पहुंचे, इस तरह सिखाना चाहिए।
  • किशोर बच्चे के माता-पिता को उसके छोटे भाई-बहन, मित्र या घर के अन्य सदस्यों एवं सगे-संबंधियों की उपस्थिति में डांटना भी नहीं चाहिए। उस वक्त सलाह देना भी उचित नहीं है।
  • ऐसे बच्चों की प्रशंसा करने से, खुलकर चर्चा करने से और उसके अच्छे कार्यों की सराहना करने से बेहतर परिणाम मिल सकते हैं।

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